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कविता

जीत

आस्तीक वाजपेयी


हम वही करते रहे जो आपने कहा था
तलवार उठाओ
तलवार उठाई,
सिर काटो
सिर काटे,
करो बलात्कार
बलात्कार किए।
हमें बताया गया था कि शायद मर सकते हैं।
नहीं बताया किसी ने कि जी सकते हैं, हार के साथ,
अपमान के साथ,
साथ एक जीत की उम्मीद के
जो हकीकत के दरवाजे खटखटाकर थक जाएगी।
कुछ बच्चे होंगे जो कहेंगे कि इसके अलावा
कुछ नहीं था जो हमने किया था।
कुछ यादें जिनमें जीत या यश नही
पसीना सना है जो धुल जाएगा
और खून लिथड़ा है जो कभी नहीं धुलेगा।

कुछ बूढ़े अकेले जो बच गए
अपनी जवानी का हिसाब माँगकर
कहते हैं "हम वही करते रहे जो आपने कहा था"

 


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